नईदिल्ली, १५ जून।
2047 तक देश को विकसित बनाने का जो संकल्प लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चल रहे हैं, कुछ गांव उस संकल्प की नींव के पत्थर के रूप में दिखते हैं। महाराष्ट्र की यह कुछ ग्राम पंचायतें निश्चित ही उत्तर भारत के राज्यों के लिए प्रेरणा बन सकती हैं किस तरह से यह गांव अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से देश के लिए मिसाल बन गए।यह वाकई दिलचस्प है कि जहां नेटवर्क समस्या के कारण मोबाइल पर बात करना आसान नहीं था, वह आदिवासी ग्राम पंचायत रोहिणी ई-गवर्नेंस में देश का पहला पुरस्कार जीतती है। वहीं, मराठवाड़ा की पाटोदा- गंगापुर ग्राम पंचायत तो ऐसा अद्वितीय उदाहरण है कि किसी भी राज्य या निकाय के लिए सुशासन की पाठशाला बन जाए।छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद) जिले की ग्राम पंचायत पाटोदा की कुल आबादी 3350 है। इस पंचायत ने उन सुधारों की दिशा में कई दशक पहले काम शुरू कर दिया था। यह महाराष्ट्र सरकार के ग्राम पंचायत ब्रांड एम्बेसडर भाष्कर राव पेरे पाटिल का गांव है, जहां स्वच्छता अभियान 1972 से चल रहा है और 2007 में ही यह खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित हो गया था। तभी से यहां डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन है। गांव में सीवर लाइन कवरेज शत-प्रतिशत है और अपने स्तर से उस गंदगी को शोधित करने के बाद ही नदी में छोड़ते हैं।
इस गांव ने केंद्र सरकार के जल जीवन मिशन से पहले ही घर-घर न सिर्फ नल से जल पहुंचा दिया, बल्कि हर नल पर मीटर लगा है। कोई कचरे में पालिथीन न फेंके, इसलिए उसे 15 रुपये प्रति किलो की दर से ग्राम पंचायत ही खरीदती है। स्वाभाविक सवाल है कि इतना पैसा कहां से आता है। तो जवाब है कि जल कर के अलावा प्रत्येक घर कम से कम चार हजार रुपये संपत्ति कर प्रति वर्ष देता है।
टैक्स देने के प्रति ग्रामीण उत्साहित हों, इसके लिए उन्हें पंचायत की ओर से हर दिन वाटर एटीएम से 20 लीटर आरओ वाटर, पांच लीटर एल्कलाइन वाटर, आटा पिसाई, दाल-मसालों की पिसाई आदि की सुविधा निश्शुल्क की दी जाती है। सामाजिक सुधारों में इस गांव का कोई सानी नहीं। कार्बन उत्सर्जन रोकने की मंशा से 2021 से व्यवस्था बना दी कि मृतकों का अंतिम संस्कार गोबर से बने उपलों से होगा और उस राख को दिवंगत प्रियजन के नाम से पौधा लगाने में प्रयोग किया जाता है। गांव के सारे संपत्ति रिकॉर्ड संशोधित कर पति-पत्नी का साझा स्वामित्व दस्तावेजों में चढ़ाया है और हर घर के बाहर पति-पत्नी दोनों का नाम लिखा है। ऐसे मामले सामने आए कि कुछ बहू-बेटे अपने वृद्ध माता-पिता की देखभाल नहीं करते तो उनके लिए निश्शुल्क रसोई पंचायत ने शुरू कर दी।पीएम मोदी के डिजिटल इंडिया के सपने में महाराष्ट्र के धुले जिले की आदिवासी बहुल रोहिणी ग्राम पंचायत ने कदमताल की है। कुछ-कुछ दूरी पर सात बस्तियां इससे जुड़ी हैं। ग्रामीण बताते हैं कि पहले यहां मोबाइल नेटवर्क भी नहीं आता था।
ऐसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में ई-गवर्नेंस के भगीरथ बने जिला पंचायत धुले के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विशाल नरवाणे। मोबाइल कंपनियों से बात कर नेटवर्क दुरुस्त कराया।परिणामत: 45 प्रतिशत साक्षरता वाले इस गांव में डिजिटल साक्षरता शत-प्रतिशत है। पंचायतीराज मंत्रालय के पोर्टल-वेबसाइट ने राह दिखाई तो ग्राम पंचायत की अपनी वेबसाइट और पोर्टल भी बना दिया। अब यहां जन्म-मुत्यु से लेकर हर आवश्यक प्रमाण-पत्र आनलाइन जारी होता है।शत-प्रतिशत टैक्स कलेक्शन ऑनलाइन है। पंचायत के अस्पताल से टेली-मेडिसिन की सुविधा दी जा रही है। ग्रामीणों की डिजिटल कार्यों में मदद के लिए 75 सहायता केंद्र संचालित हैं। हर सरकारी योजना की जानकारी बल्क मैसेज से दी जाती है। ई-गवर्नेंस पालिसी जारी करने वाली भी संभवत: पहली ग्राम पंचायत है।