
जम्मू, २५ अप्रैल ।
पहलगाम में पर्यटकों के नरसंहार के बाद केंद्र सरकार ने कड़ा कदम उठाते हुए 1960 के सिंधु जल समझौते को फिलहाल लंबित कर दिया है। अभी इस समझौते को स्थगित करने से भले ही कोई तात्कालिक फायदा नहीं दिखे ,लेकिन एक बार भारत इस पानी के उपयोग को लेकर आधारभूत ढांचा विकसित कर ले तो पाकिस्तान बूंद-बूंद को तरसेगा।साथ ही जम्मू-कश्मीर देश का पावर हाउस बनने के साथ वहां और पंजाब समेत उत्तर भारत के कई राज्यों का जल का संकट भी समाप्त हो सकता है। 1960 में हुए इस समझौते में तय हुआ था कि भारत रावी, ब्यास और सतलुज नदी के पानी का उपयोग करेगा और पाकिस्तान सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों के पानी का।पंजाब के पूर्व सिंचाई सचिव काहन सिंह पन्नू का कहना है कि सिंधु जल समझौते के तहत जो तीन नदियां पाकिस्तान के हिस्से में आई थीं, उसमें पानी की मात्रा भारत के हिस्से में आई तीन नदियों के मुकाबले में तीन गुना ज्यादा है।भारत की तीनों नदियों में पानी मात्र 35 मिलियन एकड़ फीट है जबकि पाकिस्तान के हिस्से में आने वाली नदियों में पानी 100 मिलियन एकड़ फीट है। पाकिस्तान की ज्यादातर खेती और पेयजल की जरूरत इसी पानी से पूरी होती है। यह एक अच्छा मौका है जब हम उन परियोजनाओं को पुनर्जीवित करें जो सिंधु जल समझौते के कारण रद हो गई थीं। पाकिस्तान को जाने वाला पानी जम्मू-कश्मीर में जलविद्युत परियोजनाओं के विकास में अहम योगदान दे सकता है। फिलहाल जम्मू-कश्मीर में चेनाब पर 3200 मेगावाट की आधा दर्जन जल विद्युत परियोजनाओं पर काम चल रहा है। यह सभी बहते पानी की परियोजनाएं है। इनमें जल भंडारण की क्षमता नहीं है। ऐसे में यहां पानी रोकना संभव नहीं है। वर्ष 2026 के अंत तक इनसे उत्पादन आरंभ हो जाएगा। इन परियोजनाओं के डिजाइन में अभी परिवर्तन संभव नहीं है। जबकि भविष्य की परियोजनाओं में जल भंडारण क्षमता को विकसित किया जा सकता है। इसमें चेनाब पर सावलाकोट, बुसहर और किशनगंगा जल विद्युत परियोजनाएं शामिल हैं। अगर यहां बांध बनाकर जल भंडारण क्षमता का विकास करें तो बिजली उत्पादन में वृद्धि होगी ही, बगलिहार व अन्य परियोजनाओं के लिए भी वर्ष भर पानी उपलब्ध होगा।
सतलुज, ब्यास और रावी पर भारत ने अपनी जरूरतों के मुताबिक इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाया हुआ है और इसका ज्यादातर पानी उपयोग भी हो रहा है, इसके बाद भी कुछ पानी पाकिस्तान में बह जाता है। मसलन जम्मू की उज्ज नदी पर बैराज न होने के कारण इसका पानी पाकिस्तान को जाता है।इस पर बहुद्देश्यीय परियोजना का निर्माण चल रहा है। रावी नदी पर बने रणजीत सागर बांध के नीचे बैराज नहीं है। इसलिए बिजली उत्पादन के लिए इसे आधी क्षमता पर चलाना पड़ता है। गर्मियों में हमें बिजली उत्पादन बढ़ाने के लिए इसका पानी रावी नदी में भी छोडऩा पड़ता है जो बाद में पाकिस्तान चला जाता है।फिलहाल तत्काल भले ही लाभ न मिले क्योंकि हमारा आधारभूत ढांचा विकसित नहीं है, लेकिन इन नदियों के जल का सही इस्तेमाल कर भविष्य में जम्मू-कश्मीर देश का पावर हाउस बन सकता है। साथ ही जम्मू के बंजर क्षेत्रों को इससे सिंचित कर सकते हैं।