नईदिल्ली, 0७ जून ।
मानवाधिकार समूह राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (आरआरएजी) ने शुक्रवार को दावा किया कि मोहम्मद यूनुस के शासन के दौरान 123 अवामी लीग सदस्य लक्षित हत्या के शिकार हुए। इनमें से 41 की हत्या तालिबान शैली में गला काटकर की गई।आरआरएजी के निदेशक सुहास चकमा ने कहा अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस और गृह मामलों के सलाहकार जहांगीर आलम चौधरी, अवामी लीग के सदस्यों की हत्या के लिए उत्तरदायी हैं। वे लक्षित हत्याओं के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) का रुख करेंगे, क्योंकि यह 2007-2008 में केन्या में चुनाव के बाद की हिंसा के संदर्भ में किए गए मानवता के खिलाफ अपराधों के समान हैं, जिसकी जांच आईसीसी द्वारा की गई थी।नई दिल्ली स्थित मानवाधिकार समूह ने शुक्रवार को जारी रिपोर्ट बांग्लादेश अवामी लीग और इसके सहयोगी संगठनों के लिए सदस्यता के लिए संगठित हत्या में कहा कि पांच अगस्त 2024 से 30 अप्रैल 2025 के बीच अवामी लीग और इसके सहयोगी संगठनों के 123 सदस्य लक्षित हत्या के शिकार हुए।
ये हत्याएं तो बस छोटी सी संख्या है, क्योंकि अवामी लीग के कई सदस्यों की हत्याओं की खबरें स्थानीय मीडिया में नहीं आईं।बच्चों, महिलाओं और दिव्यांगों को भी नहीं बख्शा गया। उन्होंने कुछ मामलों के उदाहरण भी दिए। उन्होंने कहा कि 17 दिसंबर 2024 को मोहम्मद यूनुस के कथित समर्थकों ने मोहम्मद मसूद राणा और 12 वर्षीय मोहद रियान की हत्या कर दी। यह हत्या इसलिए की गई, क्योंकि उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर जाय बांग्ला का नारा लिखा था। पांच दिसंबर 2024 को नमाज अदा करते समय अरीना बेगम की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी गई, क्योंकि उनका बेटा काजलदिघी कालियागंज संघ के छात्र लीग का अध्यक्ष था और छिपकर रह रहा था।आठ सितंबर 2024 को राजशाही विश्वविद्यालय छात्र लीग के पूर्व नेता अब्दुल्ला अल मसूद की उस समय हत्या कर दी गई, जब वे दवा खरीदने गए थे। वह दिव्यांग थे। 15 जुलाई से पांच अगस्त के बीच 1,400 लोगों की हत्या की गई, जिनमें अवामी लीग के सदस्य भी शामिल थे, लेकिन उनके रिश्तेदार मानवाधिकार उच्चायुक्त के कार्यालय के समक्ष गवाही नहीं दे सके, क्योंकि उन्हें हत्या का डर था। स्थिति और खराब हो गई, क्योंकि अंतरिम सरकार ने पुलिस को पिछले साल जुलाई-अगस्त में हुए विद्रोह में शामिल किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज करने या गिरफ्तार करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है।
इसमें 44 पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले भी शामिल हैं।