जांजगीर-चांपा। प्रशासनिक लापरवाही और अधिकारियों की मनमानी बनी किसानों की पीड़ा का कारण खरीफ सीजन की शुरुआत के साथ ही जिले में रासायनिक खाद, विशेषकर डीएपी और एनपीके की भारी कमी ने किसानों की चिंताओं को चरम पर पहुँचा दिया है। यह संकट केवल आपूर्ति की समस्या नहीं, बल्कि नोडल अधिकारी और विपणन अधिकारियों की निष्क्रियता, मनमानी और पक्षपातपूर्ण रवैये का परिणाम है।
4500 टन डीएपी की मांग, प्राप्ति सिर्फ 1800 टन
जिले की सहकारी समितियों ने खरीफ बुवाई के लिए 4500 टन डीएपी की अग्रिम मांग (आरओ) मार्कफेड को भेजी थी, लेकिन अब तक केवल 1800 टन ही खाद प्राप्त हो सका है, जो मांग का महज 36त्न है। इससे बुआई से पहले ही खाद संकट गहरा गया है और किसान परेशान हैं।
एनपीके की स्थिति और भी खराब
डीएपी की अनुपलब्धता में एनपीके को विकल्प बताया गया था, लेकिन 4400 टन की मांग के विरुद्ध मात्र 600 टन खाद ही जिले को मिला है — यानी सिर्फ 13त्न। यह दर्शाता है कि न योजना बनी, न क्रियान्वयन हुआ।
24000 टन खाद की मांग, केवल 8000 टन ही मिला
जिले की समितियों ने अग्रिम उठाव योजना के तहत लगभग 24000 टन खाद का आरओ जारी किया, लेकिन जिले को अब तक 8000 टन खाद ही प्राप्त हो सका है। शेष खाद की अनदेखी से किसानों में आक्रोश है।
प्रशासनिक विफलता- अतीत में नहीं थी कोई कमी
पिछले दो वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि 31 मई तक जिले में लगभग 60त्न खाद का वितरण पूर्ण हो जाया करता था। खाद आपूर्ति में जांजगीर-चांपा राज्य के अग्रणी जिलों में था। लेकिन इस वर्ष हालात पूरी तरह उलट हैं। मार्कफेड और नोडल अधिकारी की निष्क्रियता के कारण न तो समय पर भंडारण हुआ, न ही वितरण की योजना सटीक रही।
मार्कफेड और नोडल अधिकारी की मनमानी से बढ़ा संकट
स्थानीय समितियों के कर्मचारी और अध्यक्षों का आरोप है कि जिला विपणन अधिकारी खाद के वितरण में पक्षपात और मनमानी कर रहे हैं। उनका कहना है कि अधिकारी यह तय कर रहे हैं कि डीएपी किस समिति को मिलेगा और किसे नहीं, चाहे मांग कोई भी हो। समिति कर्मचारियों ने बताया कि अधिकारी खुले तौर पर कहते हैं – जहां मेरी मर्जी होगी, वहीं खाद भेजूंगा।
सूत्रों का कहना है कि यह अधिकारी जिले के ही रहने वाले हैं और अपने परिचितों व राजनीतिक तौर पर प्रभावशाली व्यक्तियों के इशारे पर खाद भेजवा रहे हैं, जिससे अन्य समितियों के किसान व कर्मचारियों में आक्रोश है।
राजनीतिक प्रभाव से फैसले? शासन की छवि धूमिल
सूत्रों के अनुसार जिला विपणन अधिकारी राज्य के एक प्रमुख विपक्षी नेता के करीबी माने जाते हैं, और उनकी भूमिका शासन विरोधी मंशा से प्रेरित प्रतीत होती है। खाद की इस कृत्रिम कमी से शासन की साख को जानबूझकर नुकसान पहुँचाया जा रहा है, फिर भी ऐसे अधिकारी को संरक्षण मिलना आमजन की समझ से परे है।
डीएपी के बदले एसएसपी और यूरिया: किसानों पर आर्थिक बोझ
विभाग ने डीएपी के स्थान पर एसएसपी (सिंगल सुपर फॉस्फेट) और यूरिया के उपयोग की अनुशंसा की है, लेकिन यह समाधान व्यावहारिक नहीं है। एक बोरी डीएपी के बराबर पोषण के लिए 3 बोरी एसएसपी और 1 बोरी यूरिया की जरूरत होती है, जिसकी कुल कीमत ?1800 के आसपास होती है, जो एक बोरी डीएपी की तुलना में महंगा और अधिक बोझिल है।
साथ ही, चार बोरियों को खेत तक पहुँचाना छोटे किसानों के लिए भारी चुनौती है — आर्थिक और शारीरिक दोनों दृष्टि से।
किसानों में गुस्सा, समितियाँ असहाय
समितियों ने समय पर आरओ भेजे थे, लेकिन उन्हें अनदेखा कर खाद भेजने का निर्णय एकतरफा लिया गया। अब किसानों को या तो खाली हाथ बैठना पड़ेगा या महंगी दर पर बाजार से खाद खरीदनी होगी। इससे बुआई में देरी और उत्पादन में गिरावट की पूरी आशंका बन गई है।
क्या कहते हैं कृषि विशेषज्ञ
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय पर सही तरीके से खाद का आवंटन और वितरण होता, तो यह संकट टाला जा सकता था। अब यदि त्वरित निर्णय नहीं लिए गए, तो जिले का खरीफ उत्पादन गंभीर रूप से प्रभावित होगा, जिससे कृषि अर्थव्यवस्था को भी गहरा धक्का लग सकता है।
तत्काल हस्तक्षेप की जरूरत
जांजगीर-चांपा जिले में रासायनिक खाद की किल्लत कृत्रिम रूप से उत्पन्न की गई प्रतीत होती है। जब अन्य जिलों में पर्याप्त खाद उपलब्ध है, तब जांजगीर-चांपा में संकट होना केवल प्रशासनिक विफलता, अधिकारी की मनमानी और राजनीतिक संरक्षण का परिणाम है।
राज्य शासन को चाहिए कि वह तत्काल इस विषय में हस्तक्षेप कर कार्रवाई करे और किसानों को समय पर खाद की आपूर्ति सुनिश्चित करे, ताकि उनकी मेहनत और भविष्य सुरक्षित रह सके।