नईदिल्ली, १६ जून ।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से लगभग पांच महीने पहले मंजूरी दिए जाने के बावजूद विभिन्न हाई कोर्ट लंबित आपराधिक मामलों से निपटने के लिए तदर्थ (एड हॉक) जजों की नियुक्ति को लेकर इच्छुक नहीं दिख रहे हैं। केंद्र सरकार के पास उपलब्ध विवरण से यह जानकारी मिली है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति प्रक्रिया से वाकिफ लोगों के मुताबिक, अभी तक किसी भी हाई कोर्ट कोलेजियम ने तदर्थ जज के तौर पर नियुक्त किए जाने वाले सेवानिवृत्त जजों के नाम की सिफारिश नहीं की है। देश में 25 हाई कोर्ट हैं, लेकिन 11 जून तक किसी भी हाई कोर्ट कोलेजियम ने केंद्रीय कानून मंत्रालय को ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं भेजा।
सुप्रीम कोर्ट ने 18 लाख से ज्यादा लंबित आपराधिक मामलों के मद्देनजर 30 जनवरी को हाई कोर्टों को तदर्थ जजों की नियुक्ति करने की इजाजत दी थी, बशर्ते इनकी संख्या अदालत के लिए स्वीकृत कुल जजों के पदों के 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो। संविधान का अनुच्छेद-224ए लंबित मामलों से निपटने में मदद के लिए हाई कोर्ट में सेवानिवृत्त जजों को तदर्थ जज के तौर पर नियुक्त करने की इजाजत देता है। तय प्रक्रिया के मुताबिक, संबंधित हाई कोर्ट का कोलेजियम हाई कोर्ट के जज के तौर पर नियुक्त किए जाने वाले उम्मीदवारों के नाम या सिफारिशें कानून मंत्रालय के न्याय विभाग को भेजता है। इसके बाद न्याय विभाग उम्मीदवारों की जानकारी एवं विवरण जोड़ता है और फिर उन्हें सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम को भेजता है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम अंतिम फैसला लेता है और सरकार को चयनित व्यक्तियों को जजों के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश करता है। राष्ट्रपति नवनियुक्त जज के नियुक्ति के वारंट पर हस्ताक्षर करती हैं। तदर्थ जजों की नियुक्ति प्रक्रिया भी वही रहेगी, सिवाय इसके कि राष्ट्रपति नियुक्ति पत्र पर हस्ताक्षर नहीं करेंगी। लेकिन तदर्थ जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति की सहमति ली जाएगी।अधिकारियों ने पहले बताया था कि एक मामले को छोडक़र सेवानिवृत्त जजों को हाई कोर्ट के तदर्थ जजों के रूप में नियुक्त करने का कोई उदाहरण नहीं है। हाई कोर्टों में तदर्थ जजों की नियुक्ति पर 20 अप्रैल, 2021 को दिए गए फैसले में शीर्ष अदालत ने कुछ शर्तें लगाई थीं। हालांकि, बाद में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई (वर्तमान प्रधान न्यायाधीश) और जस्टिस सूर्यकांत की सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ ने कुछ शर्तों में ढील दी और कुछ को स्थगित कर दिया था। पूर्व प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे द्वारा लिखे गए फैसले में लंबित मामलों को निपटाने के लिए हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जजों को दो से तीन वर्ष की अवधि के लिए तदर्थ जज के तौर पर नियुक्त करने का निर्देश दिया गया था। एक शर्त में कहा गया था कि यदि हाई कोर्ट अपने स्वीकृत पदों के 80 प्रतिशत के साथ काम कर रहा है, तो तदर्थ जजों की नियुक्ति नहीं की जा सकती, जबकि दूसरी शर्त में कहा गया था कि तदर्थ जज मामलों से निपटने के लिए अलग-अलग पीठों में बैठ सकते हैं।पीठ ने यह भी कहा कि प्रत्येक हाई कोर्ट को दो से पांच तदर्थ जजों की नियुक्ति करनी चाहिए और यह संख्या कुल स्वीकृत पदों के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।