
नईदिल्ली, १९ जून ।
ईरान और इजरायल के बीच संघर्ष लगातार बढ़ता जा रहा है। इजरायल की मिसाइल रक्षा प्रणाली ने अब तक ईरान के अधिकांश हमलों को विफल कर दिया है।आइये जानते हैं दोनों देशों की वायु रक्षा प्रणाली कैसे काम करती है और युद्ध लंबा खींचने की स्थिति में इजरायल के समक्ष क्या चुनौतियां आएंगी। ईरान के पास बैलिस्टिक मिसाइलों, लंबी दूरी के ड्रोन और क्रुज मिसाइलों का एक विशाल शस्त्रागार है। बैलिस्टिक मिसाइलें गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में एक निश्चित पथ पर यात्रा करती हैं, जबकि क्रुज मिसाइलें उड़ान के दौरान अपने मार्ग को समायोजित कर सकती हैं। ईरान, जो इजरायल से लगभग 1,000 किमी दूर है, अपने हमलों में मुख्यत: मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों और लंबी दूरी के ड्रोन का उपयोग कर रहा है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि हाल के हमलों में किस प्रकार की मिसाइलों का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन ईरान के पास फत्ताह-1 और इमाद जैसी कई मिसाइलें उपलब्ध हैं। बैलिस्टिक मिसाइलों से बचाव करना अत्यंत कठिन है, क्योंकि ये बहुत तेज गति से आती हैं और एयर डिफेंस सिस्टम के पास प्रतिक्रिया करने का बहुत कम समय होता है। यदि कुछ मिसाइलें रक्षात्मक प्रणालियों से चूक जाती हैं, तो वे भारी नुकसान पहुंचा सकती हैं। इजरायल की मिसाइल रक्षा प्रणाली: इजरायल के पास अत्यधिक प्रभावी, वायु रक्षा प्रणाली है। आमतौर पर इसे केवल आयरन डोम से जोडक़र ही देखा जाता है लेकिन यह सही नहीं है। इजरायल की रक्षा प्रणाली में कई परतें हैं, जिनमें से प्रत्येक को अलग-अलग दूरी से आने वाले खतरों से निपटने के लिए डिजाइन किया गया है। आयरन डोम इनमें से केवल एक परत है, जो कम दूरी के तोपखाने के गोले और राकेट को रोकने के लिए बनाई गई है। आयरन डोम में रडार उत्सर्जकों, कमांड व नियंत्रण सुविधाओं और इंटरसेप्टर (सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों) का एक नेटवर्क शामिल है। रडार आने वाले खतरों का तुरंत पता लगाता है, कमांड और नियंत्रण तत्व तय करते हैं किस खतरे को पहले नष्ट करना है और फिर आने वाले गोले या राकेट को नष्ट करने के लिए इंटरसेप्टर भेजे जाते हैं। इजरायल की रक्षा प्रणाली की अन्य परतों में डेविड स्लिंग, एरो 2 और एरो 3 इंटरसेप्टर शामिल हैं, जो लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों को नष्ट करने के लिए विशेष रूप से डिजाइन की गई हैं।ईरान के पास कुछ वायु रक्षा प्रणालियां हैं, जैसे कि रूसी एस300, लेकिन इनमें से अधिकांश केवल कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों के खिलाफ प्रभावी हैं। इजरायल ईरान की वायु रक्षा को कमजोर करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिससे यह स्पष्ट नहीं है कि कितनी प्रणालियां अभी भी सक्रिय हैं। ईरान युद्धाभ्यास योग्य वारहेड जैसी तकनीक विकसित करने पर ध्यान दे रहा है, जिससे बचाव करना कठिन हो सकता है।इजरायल की मिसाइल रक्षा प्रणाली पूरी तरह से कार्यशील रहेगी, लेकिन जैसे-जैसे हमले इसके इंटरसेप्टर के भंडार को खत्म करते हैं, प्रणाली की प्रभावशीलता कम हो सकती है। मिसाइल सुरक्षा इंटरसेप्टर की संख्या पर निर्भर करती है। बचाव करने वाले को प्रत्येक हमलावर मिसाइल को कई इंटरसेप्टर सौंपने पड़ते हैं ताकि नुकसान की गुंजाइश कम से कम रहे। हालांकि हमलावर के पास भी मिसाइलों की संख्या सीमित होती है। जैसे-जैसे संघर्ष जारी रहेगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि किस पक्ष के पास पहले हथियार खत्म होते हैं। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, ईरान ने लगभग 3,000 में से 1,000 बैलिस्टिक मिसाइलें दागी हैं, लेकिन इसके पास अभी भी एक बड़ा भंडार है। यह स्पष्ट नहीं है कि ईरान अपने संसाधनों को फिर से भरने के लिए कितनी जल्दी नई मिसाइलें बना सकता है।