कोरबा। मनुष्य के निकट रहकर पक्षी उनके व्यवहार, भाषा और जीवनशैली को समझने लगे हैं। तोता और मैना जैसे पक्षी, जिन्होंने मनुष्यों की बोली की नकल करते हुए अपने कहने के तरीके को बदला। संवेदनशील मनुष्यों के कारण ऐसे पक्षियों की जीवन यात्रा भली भांति चल रही है लेकिन पिंजरे में रहकर किस प्रकार की कसक उनमें बनी हुई है और कैसा दर्द है, यह शायद अब तक नहीं जाना जा सका है। भले ही पक्षियों के मामले में कई प्रकार के नियम बना दिए गए हैं लेकिन इस पर अमल बहुत ज्यादा नहीं हो सका है। कोरबा में बड्र्स लवर से बात हुई तो उन्होंने बताया कि ये पक्षी सिर्फ शब्दों की नकल नहीं करते, बल्कि भावनाओं की भी झलक उनके व्यवहार में दिखाई देती है। वे समझते हैं कि कौन सा मनुष्य उन्हें प्रेम से देख रहा है और कौन उपेक्षा से।
दार्शनिक के अंदाज में लोग इस बात को भी कहने से नहीं भूलते की इस समझदारी और निकटता के बावजूद, उनका जीवन स्वतंत्र नहीं है। वे छोटे-छोटे पिंजरों में कैद होकर रह गए हैं। उनकी उड़ान जो कभी आकाश की विशालता को छूने के लिए होती थी, अब लोहे की सलाखों में सिमट कर रह गई है। वे चाहकर भी अपने मन की पीड़ा किसी से साझा नहीं कर सकते, क्योंकि उनके पास अपने दु:ख को व्यक्त करने का कोई साधन नहीं है। और शायद ऐसा इसलिए क्योंकि ईश्वर ने उन्हें यह क्षमता नहीं दी है।
हरदी बाजार में एक प्राइवेट स्कूल का संचालन करने वाले प्रकृति प्रेमी अजय दुबे बताते हैं प्रतिदिन सूर्योदय की पहली किरण खिडक़ी से झांकती है, तो पक्षियों को देखकर आप यह समझ सकते हैं कि उनकी इच्छा स्वच्छंद उडऩे की होती हैं। लेकिन पिंजरे की सीमाएँ उन्हें रोक लेती हैं। उनके सपने, उनकी आज़ादी – सब कुछ धीरे-धीरे घुटती चली जाती है। कभी-कभी उनकी चुप्पी ही उनके सबसे बड़े विलाप का रूप ले लेती है। शायद इसलिए अपने समय के सबसे चर्चित गीतकार प्रदीप ने एक रचना में कहा था- जब विधाता ने उनके भाग्य की रचना की, तो उन्होंने कलम को स्याही में नहीं, आंसुओं में डुबोकर लिखा। आप महसूस करेंगे कि जब कभी आपका सामना पिंजरे में कैद पंछी से होगा तो उसकी आंखें ऐसा पूछते लगेंगे की – क्या मेरा आसमान लौटेगा?