
भारतीय ज्ञान परम्परा के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में सेमिनार आयोजित
पामगढ़। चैतन्य विज्ञान और कला महाविद्यालय पामगढ़ में मंगलवार को भारतीय ज्ञान परम्परा के वैश्विक परिप्रेक्ष्य विषय कर एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यक्रम में प्रख्यात अंतर्राष्ट्रीय वक्ताओं ने भाग लिया, जिन्होंने भारत की समृद्ध बौद्धिक विरासत की वैश्विक प्रासंगिकता पर अपने विचार साझा किए। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका के उटाह प्रांत से पहुंची संस्कृत साहित्य अध्यात्म एवं योग दर्शन की अध्येता एंजी वर्कमैन, विषय विशेषज्ञ के रूप में अमेरिका के मिनिसोटा राज्य से आई भारतवंशी योग प्रशिक्षक डॉ. गीतांजलि उपस्थित रहीं। कार्यक्रम की शुरुआत माता सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित करके को गई। प्रारंभ में वरिष्ठ प्रोफेसर शुभदा ने वक्ताओं का परिचय देते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा से अवगत कराया। अपने संबोधन में मुख्य वक्ता एंजी वर्कमैन ने भारतीय ज्ञान प्रणाली की सार्वभौमिक प्रयोज्यता पर जोर देते हुए कहा कि प्राचीन संस्कृत साहित्य मानसिक कल्याण, नैतिक जीवन और समग्र स्वास्थ्य जैसे समकालीन मुद्दों पर गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। उन्होंने भारतीय ज्ञान परम्परा के अभ्यासों को आत्मसात किए जाने के स्वयं के अनुभव भी साझा किए। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को आत्मसात करके आप स्वयं उपचार बन सकते हैं। डॉ. गीतांजलि ने भारतीय योग प्रथाओं को पश्चिमी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में एकीकृत करने के अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने योग के लाभों और भारतीय दर्शन में इसकी जड़ों की बढ़ती वैश्विक मान्यता पर प्रकाश डाला। इस विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के महत्व को रेखांकित किया। संस्था के संचालक वीरेंद्र तिवारी ने कहा कि इस कार्यशाला ने भारतीय ज्ञान प्रणाली के वैश्विक दृष्टिकोण पर सार्थक आदान प्रदान के लिए एक मंच के रूप में कार्य किया है। परिचर्चा में आधुनिक चुनौतियों से निपटने में प्राचीन भारतीय ज्ञान की प्रासंगिकता तथा इस ज्ञान के संरक्षण एवं प्रसार में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के महत्व पर प्रकाश डाला गया जिसका लाभ प्रतिभागियों को निश्चित रूप से जी मिलेगा। वरिष्ठ प्राध्यापक विवेक जोगलेकर ने आज की वैश्वीकृत दुनिया में भारतीय ज्ञान प्रणालियों के शु महत्व पर विचार करते हुए सभा को ब संबोधित किया। उन्होंने इन प्रणालियों की समझ और अनुप्रयोग को आगे बढ़ाने के लिए अंतर-सांस्कृतिक संवाद और अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देने के लिए शैक्षणिक संस्थानों की आवश्यकता पर बल दिया। समापन सत्र में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. वीके गुप्ता ने वक्ताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया।