
चंडीगढ़ 25 जून। लुधियाना पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में हाल ही में हुए उपचुनाव में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मिली हार के बाद दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन की चर्चा फिर से शुरू हो गई है। पार्टी के वरिष्ठ नेता अब इस बात को मानने लगे हैं कि यदि दोनों पार्टियों का गठबंधन होता तो राजनीतिक परिदृश्य कुछ और होता। गठबंधन टूटने के बाद से दोनों पार्टियां राजनीतिक रूप से हाशिये पर चल रही हैं।लुधियाना उपचुनाव में भाजपा तीसरे और शिअद चौथे स्थान पर रहा। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि अकेले चुनाव लडऩे से दोनों दलों को नुकसान हो रहा है। शिरोमणि अकाली दल ने तीन कृषि कानूनों के विरोध में भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ा था।
इसके बाद से दोनों पार्टियों ने अलग-अलग विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भाग लिया। 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद से शिअद ने राज्य में आठ बार सरकार बनाई है, लेकिन गठबंधन टूटने के बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी केवल तीन सीटें ही जीत पाई। वहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव में उसका एक ही सांसद चुना गया। भाजपा को विधानसभा में दो सीटें मिलीं, लेकिन लोकसभा चुनाव में उसका सूपड़ा साफ हो गया। उधर, पंजाब में 2022 से 2025 तक छह उपचुनाव हुए।
इनमें से चार सीटों पर शिअद ने चुनाव नहीं लड़ा। जालंधर पश्चिम और लुधियाना पश्चिम में शिअद ने अपने प्रत्याशी खड़े किए, लेकिन हार मिली।