कोरबा। कोरबा जिले के करतला विकासखंड में इन दिनों खेती का एक नया तरीका जोर पकड़ रहा है – प्राकृतिक खेती. लगभग 400 किसान अब अपनी फसलों में किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरक या कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। ये किसान प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर, पारंपरिक तरीकों से खेती कर रहे हैं और इसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं।
प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने और किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की जीवा परियोजना महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.नाबार्ड ने करतला विकासखंड के किसानों को प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूक किया। जब किसानों को यह अहसास हुआ कि रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक न केवल खेतों को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि उनके स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हैं, तो उन्होंने प्राकृतिक खेती को अपनाने का फैसला किया।अब, ये किसान गोबर, गोमूत्र, नीम और नीम की पत्तियों जैसी प्राकृतिक चीजों का उपयोग करके खाद और कीटनाशक खुद बनाते हैं। यह न केवल उनकी लागत को कम करता है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी बेहतर है। नाबार्ड के कोऑर्डिनेटर दिनेश कुमार तिवारी ने बताया कि लगभग 400 किसानों ने प्राकृतिक खेती शुरू की है.नाबार्ड द्वारा इन किसानों को प्रशिक्षण दिया गया है कि कैसे अपशिष्ट पदार्थों से खाद और फसलों में लगने वाले रोगों से लडऩे के लिए दवा बनाई जाए. इस प्रशिक्षण के बाद, किसानों की खेती में लागत कम होने लगी है और खेतों की उर्वरता में भी सुधार हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप अच्छी पैदावार हो रही है।