
राजौरी २० मई।
सुप्रीम कोर्ट ने आज निचली अदालत के जजों यानी जूनियर डिविजन सिविल जज की नियुक्ति पर अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट का कहना है कि इन पदों पर परीक्षा के लिए उम्मीदवार को कम से कम तीन साल की लीगल प्रैक्टिस करना जरूरी है। कोर्ट ने लॉ ग्रेजुएट की सीधी भर्ती पर रोक लगा दी है। वह परीक्षा तभी दे सकेंगे, जब वो लॉ से ग्रेजुएट होने के बाद तीन साल वकील के तौर पर काम करें।
मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच ने यह फैसला सुनाया है। जस्टिस गवई ने कहा, नए लॉ स्नातकों की नियुक्ति से कई समस्याएं पैदा हुई हैं, जैसा कि हाईकोर्ट के हलफनामों से पता चलता है। हम हाईकोर्ट के साथ इस बात पर सहमत हैं कि न्यूनतम प्रैक्टिस की आवश्यकता है। यह तभी संभव है जब प्रत्याशी को न्यायालय के साथ काम करने का अनुभव हो। पिछले 20 सालों से,नए लॉ स्नातकों को बिना अभ्यास के न्यायिक अधिकारी के रूप में नियुक्त करना एक सफल अनुभव नहीं रहा है।
ऐसे नए लॉ स्नातकों ने कई समस्याओं को जन्म दिया है। 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने न्यूनतम प्रैक्टिस की आवश्यकता को खत्म कर दिया था, जिससे नए लॉ ग्रेजुएट्स को मुंसिफ-मजिस्ट्रेट पदों के लिए आवेदन करने की अनुमति मिल गई थी। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दायर किए गए थे जिसमें केवल वकीलों के लिए ही शर्त को बहाल करने की मांग की गई थी। कई उच्च न्यायालयों ने भी न्यूनतम प्रैक्टिस की आवश्यकता को बहाल करने के कदम का समर्थन किया।