
पुणे, 0८ अप्रैल
पुणे के दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल में कथित तौर पर 10 लाख रुपए जमा न कराने पर गर्भवती महिला को भर्ती न करने और बाद में उनकी मौत होने के मामले की जांच कर रही समिति ने अस्पताल को दोषी ठहराया है।समिति ने कहा है कि अस्पताल ने गर्भवती महिला को 10 लाख रुपये जमा कराने की मांग करके प्रथम दृष्टया नियमों का उल्लंघन किया। चैरिटिबल अस्पतालों का दायित्व है कि वे मरीज को आपातकालीन उपचार प्रदान करें। भाजपा के विधान परिषद सदस्य अमित गोरखे के निजी सचिव की पत्नी तनीषा भिसे को कथित तौर पर 10 लाख रुपये जमा न करने पर दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल ने भर्ती करने से इन्कार कर दिया था। इसके बाद एक अन्य अस्पताल में जुड़वां बेटियों को जन्म देने के बाद उनकी मृत्यु हो गई थी। राज्य सरकार ने घटना की जांच के आदेश दिए थे।राज्य के स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. राधाकिशन पवार की अध्यक्षता वाली चार सदस्यीय समिति ने सोमवार को पुणे पुलिस को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। रिपोर्ट में कहा गया है कि अस्पताल ने प्रथम दृष्टया उन मानदंडों का उल्लंघन किया है जिसके तहत धर्मार्थ अस्पताल आपातकालीन मामलों में अग्रिम भुगतान की मांग नहीं कर सकते। समिति ने डीएमएच के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बांबे चैरिटिबल ट्रस्ट कानून के अनुसार चैरिटेबल अस्पतालों को आपात स्थिति में अस्पतालों को रोगी को तुरंत भर्ती करना होगा और हालत स्थिर होने तक जीवन रक्षक आपातकालीन उपचार के लिए आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करनी होंगी। किसी चैरिटिबल अस्पताल को आपातकालीन रोगी के भर्ती होने की स्थिति में जमा राशि नहीं मांगनी चाहिए। अस्पताल के लिए यह भी अनिवार्य है कि वह मरीज को आगे के उपचार के लिए रेफर किए गए अस्पताल तक ले जाने की व्यवस्था करे। महाराष्ट्र महिला आयोग की प्रमुख रूपाली चाकणकर ने कहा कि रिपोर्ट से स्पष्ट है कि अस्पताल की गलती थी और उसने नियमों का पालन नहीं किया। दो और रिपोर्ट का इंतजार है। रिपोर्ट जमा हो जाने के बाद अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई के बारे में निर्णय लिया जाएगा। इस बीच डीएमएच के कंसल्टिंग स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सुश्रुत घैसास ने जनाक्रोश, इंटरनेट मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया और धमकी भरे काल के मद्देनजर इस्तीफा दे दिया है।