
नईदिल्ली, 01 मार्च । बदहाल अर्थव्यवस्था और खुशहाल आर्थिकी का अंतर महसूस करना कठिन नहीं है। 2004 से 2014 के बीच मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के कार्यकाल और उसके बाद से अब तक के नरेन्द्र मोदी सरकार के समय देश ने दोनों दौर देखे हैं। 2014 में मोदी के नेतृत्व में जब राजग सरकार ने लोगों की असीमित आकांक्षाओं के साथ कमान संभाली थी तब का परिदृश्य कुछ इस तरह था।संप्रग सरकार के अंतिम महीनों में महंगाई दर 10 प्रतिशत के आसपास थी। चालू खाते का घाटा पांच प्रतिशत के चिंताजनक स्तर पर था और विदेशी मुद्रा कोष में सिर्फ 292 अरब डालर थे। कच्चे तेल की कीमत 90 डालर प्रति बैरल को पार कर रही थी। अर्थव्यवस्था की कमजोर बुनियाद को देख देश-विदेश के निवेशक केवल हिचक ही नहीं रहे थे, बल्कि हताश भी थे। विदेशी निवेशक तो तेजी से अपना फंड निकाल रहे थे। उन्हें ऐसी कोई तस्वीर नजर नहीं आ रही थी, जो उन्हें उनके निवेश के बदले कुछ मुनाफा पहुंचाती। तब देश और दुनिया की किसी भी एजेंसी ने यह सोचा भी नहीं था कि इन हालात में 10वें पायदान पर खड़ी भारतीय अर्थव्यवस्था अगले 10 साल में पांचवें स्थान पर पहुंच जाएगी। यह हुआ और वह भी 2020 से 2022 तक कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के बावजूद भी। जब बाकी दुनिया ने इस अभूतपूर्व चुनौती के समक्ष हथियार डाल दिए थे, तब भारत की इकोनमी न केवल टिकी रही, बल्कि एक बड़े हिस्से के लिए उम्मीद की किरण के रूप में भी उभरी। आज जब देश आर्थिक मजबूती की तरफ बढ़ रहा है, तब एक कारपोरेट प्रोफेशनल से लेकर समाज में सबसे पिछली पंक्ति में खड़े व्यक्ति के जीवन में भी व्यापक परिवर्तन आया है। सरकार के पास खर्च करने के लिए पैसा है।यह सब संभव हो सका सरकार के उन सुधार कार्यक्रमों से, जिसने देश को वैश्विक निवेश का केंद्र बना दिया। मैन्यूफैक्चरिंग हब बनने के लिए माहौल तैयार कर दिया। टैक्स की व्यवस्था बदलकर सरकार की आमदनी को बढ़ा दिया और इन सब की बदौलत लोगों के जिंदगी जीने के अंदाज को बदल दिया। अर्थव्यवस्था के विकास से लोगों की आय और खरीदारी क्षमता बढऩे लगी। कभी बिजली को तरसने वाले गांवों में भी एसी और फ्रिज चल रहे हैं, क्योंकि बिजली की उपलब्धता बढ़ रही है। खाना बनाने के लिए लकड़ी जैसी चीजों पर निर्भर रहने वाले घरों में गैस चूल्हों पर खाना पकने लगा। सरकार को सामाजिक योजनाओं में खर्च करने के लिए भी पैसा मिला। इनके केंद्र में महिलाएं हैं।खेती के लिए किसानों की ड्रोन तक पहुंच सामान्य बात नहीं है। यह कई मोर्चों, जिसमें कृषि का आधुनिकीकरण भी शामिल है, पर एक साथ ध्यान देने के कारण संभव हो सका। गांव से लेकर शहर तक सड़कें बनीं तो इससे बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए हैं। राजमार्गों की लंबाई 2014 के मुकाबले 60 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है। यह सड़क निर्माण में आई तेजी का ही नतीजा है कि हर साल एक करोड़ से अधिक दोपहिया वाहन बिक रहे हैं। महंगी कारों के लिए अगर लोगों को इंतजार करना पड़ रहा है तो इसका कारण भी मांग में अभूतपूर्व बढ़ोतरी है।देशभर के छोटे-बड़े सभी एयरपोर्ट पर भीड़ बढ़ रही है। मोबाइल की बिक्री आसमान पर है। 88 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। डिजिटल क्रांति की शुरुआत हुई है। घर बैठे लोग देश-विदेश से सामान मंगा रहे हैं। देखते ही देखते भारत का बड़ा बाजार दुनिया के मानचित्र पर छा गया। ऐसे में निवेश के लिए बाजार ढूंढऩे वाली कंपनियां भारत की कैसे अनदेखी कर सकती हैं। मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया, प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआइ) व आत्मनिर्भर भारत जैसी योजनाओं ने पूरे भारत में मैन्यूफैक्चरिंग का माहौल बनाया है। कंपनियों के बीच निवेश की होड़ है।पहली बार भारतीय वस्तुओं का निर्यात 400 अरब डालर के आंकड़े को पार कर गया। यह सब देख एप्पल जैसी दिग्गज कंपनी भी खुद को भारत आने से रोक नहीं पाई। टेस्ला जैसी नामी कार निर्माता कंपनी भारत आने की तैयारी में जुट गई। इन सबका फायदा यह हुआ कि भारतीय श्रमिकों को अधिक कुशल बनने का मौका मिला। उनके लिए रोजगार के अधिक अवसर खुल गए और कभी सिर्फ सरकारी नौकरी पर निर्भर रहने वाले भारतीय युवाओं की मांग देश-विदेश में होने लगी।कभी भारतीय अर्थव्यवस्था को दुर्बल व अस्थिर श्रेणी में रखने वाली वैश्विक एजेंसियां अब अगले तीन साल में भारत को तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था का ताज पहनाने जा रही हैं। आइएमएफ व विश्व बैंक भारत को दुनिया के मैप का चमकता सितारा बता रहे हैं। यह कैसे हुआ, इस सवाल का सीधा जवाब है-समय पर लिए गए फैसले, सही क्रियान्वयन और आगे की दृष्टि। इन्फ्रास्ट्रक्चर का तेज विकास, टैक्स संरचना में सुधार और बहुआयामी गरीबी से बाहर लाने के लिए सामाजिक क्षेत्र पर बड़े खर्च ने इस लक्ष्य को हासिल करने में बड़ी भूमिका निभाई।इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण से घरेलू स्तर पर लोगों की जिंदगी आसान हुई और निवेशक आकर्षित हुए। घरेलू अर्थव्यवस्था का पहिया रुका नहीं। जीएसटी लागू करने से देशभर में एकल व्यवस्था लागू हुई। विदेशी निवेशकों में भरोसा जगा और अब तो हर साल जीएसटी से मिलने वाले राजस्व में बढ़ोतरी हो रही है। इनकम टैक्स नियमों के सरलीकरण और सरकार की पैनी नजर से हर साल प्रत्यक्ष कर देने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। खर्च करने के लिए सरकार को पर्याप्त राजस्व मिलने के साथ राजकोषीय घाटे को काबू में रखने में मदद मिल रही है।बहुआयामी गरीबी को दूर करने के प्रयास से स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल, पोषण, आवास जैसी सुविधाओं पर सरकार ने अपना खर्च बढ़ाया, जिससे पिछले नौ सालों में 24.8 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले। एक ऐसे वर्ग ने आकार लेना शुरू किया, जो अब अपनी सुविधाओं पर खर्च कर सकता है। अपने जीवन को बदलने में आगे बढ़ सकता है।