दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 136 का इस्तेमाल तभी करना चाहिए, जब विशेष रूप से अनुरोध किया जाए। हालांकि, उपाध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने कहा कि इसका बढ़ता इस्तेमाल स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि इससे मध्यस्थता बोर्ड के कामकाज पर असर पड़ रहा है। संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत सुप्रीम कोर्ट को विशेष अधिकार दिए गए हैं। इसका नाम स्पेशल लीव पिटीशन (एसएलपी) है। संबंधित एनएबी को देश के किसी भी न्यायालय, जिसमें उच्च न्यायालय (सैन्य न्यायालयों को छोडक़र) शामिल हैं, के फैसले के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत याचिका दायर करने की अनुमति दी गई है। इसे स्वीकार या अस्वीकार करना सर्वोच्च न्यायालय का एकमात्र अधिकार है। नई दिल्ली में मध्यस्थता पर आयोजित एक सेमिनार में बोलते हुए जगदीप धनखड़ ने कहा: सुप्रीम कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 136 का इस्तेमाल केवल विशिष्ट मामलों में ही करना चाहिए। क्योंकि इस नियम का इस्तेमाल यह बताने के लिए किया जाता है कि जिला न्यायाधीशों और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों सहित सभी को कैसे काम करना चाहिए। जब इसका बड़ी संख्या में इस्तेमाल किया जाता है, तो मध्यस्थता प्रक्रिया प्रभावित होती है। इस नियम के लागू होने से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों से जुड़े मुद्दों का समाधान आसानी से नहीं हो पाया है। न्यायाधिकरणों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है। हालांकि, समुद्री, विमानन और बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में संबंधित क्षेत्रों के विशेषज्ञों की नियुक्ति जरूरी है। उन्होंने कहा कि यह चिंताजनक है कि भारत विभिन्न बाधाओं के कारण अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र के रूप में उभरने में असमर्थ है।